– डॉ मनीष श्रीवास्तव : ‘क्रान्तिदूत’ सीरीज के लेखक
काकोरी काण्ड में फरार मुजरिम होने के कारण पुलिस आज़ाद साहब की जान के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी। क्रांतिकारों की दुनिया के अब वे एक जांबाज़ सिपाही थे जिनकी दिलेरी के किस्से अब हर शहर में गूँज रहे थे। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महान क्रांतिकारियों के साथ अब उनका नाम लिया जाने लगा था। आज़ाद साहब अब महज एक चंचल युवक “क्विक सिल्वर” नहीं रह गये थे और भगत सिंह, सुख देव, राज गुरु,अशफ़ाक उल्लाह, बिस्मिल आदि के साथ हर एक एक गंभीर बैठक में शामिल हुआ करते थे।
अंग्रेज़ों के विरुद्ध किये जाने वाले हर एक्शन से पहले संगठन की बैठक में उनकी मौजूदगी ज़रूरी होती थी। संगठन के भेद को बनाये रखने के लिए हर शख्स को हिदायत थी कि अपने घर का पता दूसरे सदस्य को ना बताये और तस्वीर तो खिंचवाने का मतलब ही नहीं था। यही एक कारण है कि उन महान क्रांतिकारियों की बहुत ज़्यादातस्वीरें आज भी हमारे पास नहीं हैं।
उस रोज़ आज़ाद आँगन में व्यायाम पश्चात स्नानआदि कर चुके थे। श्वेत धोती कमर पर लुंगी की तरह लपेटे हुए थे और कंधे पर जनेऊ था ही। आज़ाद जब अच्छे मूड़ में होते थे तो बाल काढ़ते हुए कुछ भी गुनगुना रहे होते थे। उस रोज़ भी गुनगुना ही रहे थे। मास्टर जी को अचानक जाने क्या सूझा, उन्होंने अचानक अपना कैमरा उठाया और बोले,
“पंडितजी, आज आप कुछ अलग ही रहे हैं एक फोटो खींच लूँ?”
“अरे नहीं मास्टर जी, आपको तो पता ही है कि संगठन में इसकी मनाही है।”
आज़ाद की किसी तरह की कोई भी तस्वीर उस रोज़ तक किसी के पास नहीं थी। वे नहीं चाहते थे कि किसी तरह कोई फोटो ब्रिटिश पुलिस तक पहुँच जायेऔर उनकी पहचान हो सके। आज़ाद को भी यह पता था कि अंग्रेज़ों ने उनके पीछे गुप्तचर लगाये हुए हैं इसलिए वो नहीं चाहते थे कि उनकी फोटो खींची जाये।
“वो तो नये सदस्यों के साथ है पंडित जी। तुम और मैं नये हैं क्या?”
“फिर भी” आज़ाद उल्झन में थे।
मास्टर जी आज़ाद के नज़दीक आये और कंधे पर हाथ रह कर बोले,
“आज़ाद, तुम्हारी तस्वीर की इसलिए और भी ज़रुरत है कि आने वाली पीढ़ी यह देख और समझ सकें कि आज़ाद उन्हीं की तरह आम शक्ल सूरत का एक नौजवान था मगर स्वतंत्रता,क्रांति की भावना और साहस ने उसे भारत का एक महान क्रांतिकारी बना दिया।”
आज़ाद चुप थे।
“ये तस्वीर के बारे में किस को पता नहीं चलेगा और पूर्ण रूप से सुरक्षित रहेगी। मैं अपने लिए ही ले रहा हूँ। घबराओ मत, भरोसा है ना मुझपर?” मास्टर जी खड़े हो गये।
“क्या बात कर दी मास्टर जी आपने, जान से ज़्यादा भरोसा है आप पर।”
आखिरकार मास्टर जी ने आज़ाद को मना ही लिया तस्वीर के लिए। लेकिन आज़ाद जी ने हलके से एक बार और टालने की कोशिश की,
“लेकिन ऐसे उघारे बदन, अच्छा नहीं लगेगा, मैं अंदर से कुर्ता पहनकर आता हूँ?”
मास्टर जी मौके को गंवाना नहीं चाहते थे। आज़ाद के मूड का पता नहीं, कहीं बदल गया तो फिर वो राजी नहीं होने वाले थे। मास्टर जी बोले,
“दाऊ, कुर्ता रेन दो।”
“अरे मूँछ तो ठीक कर लूँ, नहाने से बिगड़ गयी हैं।” कहते हुए आज़ाद ने अपनी मूँछ उमेठना शुरू की।
“क्लिक!”
“अरे मास्टर जी आप भी ना..” आज़ाद कहते ही रह गये।
तस्वीर ली जा चुकी थी।

किन्तु इस तस्वीर के खिंचने के कुछ दिन बाद ही आज़ाद को महसूस होने लगा कि यह काम ठीक नहीं हुआ है। उस रोज़ वोविश्वनाथ वैशम्पायन के पास थे जब अचानक से उनके मन में पता नहीं क्या सूझा और विश्वनाथ से बोले,
“एक काम करोगे मेरा?”
“कैसी बात कर रहे आप दाऊ? पूछने की क्या बात है? आप आदेश कीजिये।”
“तुम ज़रा मास्टर जी के पासजाओ और उनसे कहो कि वो जो तस्वीर उन्होंने मेरी ली है उस तस्वीर को तुरंत नष्ट कर दिया जाना चाहिए।”
“कौन सी तस्वीर दाऊ?” वैशम्पायन चौंक गये।
“अरे वो मास्टर जी ने बहला-फुसला कर मेरी एक तस्वीर उतार ली है जबकि तुमको पता है कि यह संगठन के क़ानून के खिलाफ़ है।”
“अब लेली है तो ले ली है दाऊ।”
“नहीं विश्वनाथ! जो गलत है वो गलत है। कोई भी उसका दुरूपयोग कर सकता है।”
विश्वनाथ तुरंत मास्टर जी के पास पहुँचे और मास्टर जी को आज़ाद का संदेसा सुनाया।
“हम्म्म्म!”
“क्या हुआ मास्टर जी?” विश्वनाथ अब चिंतित थे।
“मुझे आज़ाद के ड़र के बारे में पता है और यह भी पता है कि भारत की स्वंत्रता में अभी आज़ाद की कितनी ज़रुरत है।”
“जी मास्टर जी।”
“देखो बच्चन, आज नहीं तो कल देश को आज़ाद होना ही है। तुम यह बताओ कि भारत के आज़ाद हो जाने पर लोग इस महान क्रांतिकारी को किस तरह याद रखेंगे? मास्टर जी ने वैशम्पायन को समझाया।
“मैं मानता हूँ इस बात को।”
“तुम निश्चिंत रहो विश्वनाथ, आज़ाद के जीते जी यह तस्वीरकभी आम जनता के सामने नहीं आएगी। तुमको यह भी पता है कि जिस रास्ते पर आज़ाद चल रहे हैं उसका अंजाम क्या है।यह जान लो कि यह एक अकेली तस्वीर है जिससे उनकी स्मृति सुरक्षित रहेगी और लोग इस जाँबाज़ आज़ाद को कभी भूल नहीं पायेंगे।” मास्टर जी वैशम्पायन को यह समझाने में सफल हो गये थे।
“मैं ऐसा करता हूँ गया कि इसके निगेटिव की प्लेट को दीवार में चुनवा देता हूँ और इसके प्रिंट को नष्ट कर देता हूँ। तुम लौट कर आज़ाद को यह बता देना कि उनकी तस्वीर नष्ट कर दी गयी है।”
“हम दाऊ से झूठ ना बोल पायेंगे मास्टर जी।” वैशम्पायन के लिए आज़ाद साहब से झूठ बोलना बेहद मुश्किल था।
मास्टर जी मुस्कुराये और बोले,“अश्वथामा मारा गया” याद है ना?
वैशम्पायन ने मास्टर जी की ओर देखा,
“तुम आज़ाद साहब से वही कहोगे जो तुम देखने वाले हो।” मास्टर जी ने वैशम्पायन के सामने आज़ाद साहब की वो तस्वीर और कुछ दूसरे नेगेटिव नष्ट कर दिये।
“अब तुम आज़ाद को बोलना कि आपकी तस्वीर और नेगेटिव नष्ट कर दिये हैं मास्टर जी ने।ठीक है ना विश्वनाथ?” मास्टर जी विश्वनाथ के कंधे पर हाथ रखा।
विश्वनाथ लौटे और आज़ाद के पास पहुँचे।
“कहाँ हैं तस्वीर?” आज़ाद चिंतित थे।
“आपकी तस्वीर और नेगेटिव नष्ट कर दिये हैं मास्टर जी ने।”विश्वनाथ धीमे से बोले।
“खाओ हमाई सौं विश्वनाथ।”
“आपकी सौं दाऊ।”
अश्वथामा एक बार फिर काल के गाल को प्राप्त हुआ था।
जब आज़ाद शहीद हो गये तब यह फोटो मास्टर जी ने दीवार से निगेटिव निकलवा कर बनवाई और इस तरह देश के सामने आयी उस महान क्रांतिकारी की एकमात्र जीवंत छवि जो आज तक देश के तमाम वासियों के मन में बसी है।
अब आते हैं उस चौथी तस्वीर पर जिसमें आज़ाद एक महिला और दो बच्चों के साथ बैठे हुए हैं। यह वही तस्वीर है जिसके सहारे भारत सरकार ने आज़ाद साहब के ऊपर डाक टिकट जारी किया था जो आज भी उनकी अमिट पहचान है। बहुत दिनों तक इन्टरनेट पर यह खबर उड़ती रही कि यह आज़ाद साहब की धर्मपत्नी और उनके बच्चों की हैं। यह तस्वीर लेने का कारण यह था कि लोगों को यह लगे कि आज़ाद मास्टर जी के परिवार के ही सदस्य हैं।

आपको बताता चलूँ कि इस तस्वीर में आज़ाद साहब मास्टर जी के घर में यानि मेरे नाना श्री मास्टर रुद्रनारायण जी की धर्मपत्नी श्रीमती मुन्नीदेवी (मेरी नानी) और उनकी दो बिटियों सावित्री जी और लक्ष्मी जी के साथ बैठे हैं।