Courtesy: https://twitter.com/v_shuddhi/status/1555766189065789440?s=21&t=BzTZUCxjWFtAwDpCZqdU0g

रक्षाबंधन में बहन की रक्षा का सबसे प्रचलित उदहारण हमें चित्तोड़ की रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ का दिया जाता है बचपन में हमें पाठयक्रम में पढ़ाया जाता रहा है कि जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तोड़ पर हमला किया तब चित्तोड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को पत्र और राखी भेज कर उससे मदद माँगी थी और हुमायूँ रानी की सहायता के लिए आया भी था मगर तब तक देर हो चुकी थी और रानी ने जौहर कर लिया था। मुग़लों के इस दयालुपने को (जो हमें सिर्फ़ अपने पाठयक्रमों में ही देखने सुनने को मिला जबकि असलियत तो इससे बिलकुल उलट थी )
हमें हिन्दू-Muस्लिम एकता के उदाहरण के तौर पे पढ़ाया जाता हैं। हमारे देश का इतिहास sick-यूलर इतिहासकारों ने लिखा है। मुग़लों को महान बनाने के लिए उन्होंने न केवल सच को छुपाया बल्कि उसे पूरी तरह से तोड़-मरोड़ कर मुग़लों को महान बनाते हुए हमारे सामने परोसा गया
रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ की राखी का क़िस्सा भी इसी षड्यंत्र का शिकार हुआ कहानी का सच – सन 1535 दिल्ली का शासक हुमायूँ (बाबर का बेटा) के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी गुजरात का शासक बहादुरशाह। अफीम का नशेड़ी हुमायूँ पश्चिम से बहादुर शाह का बढ़ता दबाव से विचलित हो रहा था
इसी नशे की जद में वह तीन वर्षों दिल्ली में ही पड़ा रहा और उधर बहादुर शाह अपनी शक्ति बढ़ाता जा रहा है वो मालवा को जीत चुका है और मेवाड़ भी उसके अधीन हो गया था जब दरबारी अमीर, सामन्त और उलेमा हुमायूँ को चैन से बैठने नहीं दिया तब बहादुर शाह की बढ़ती शक्ति से सब भयभीत होकर हुमायूँ
मालवा की ओर बढ़ा। इस समय बहादुरशाह चित्तौड़ दुर्ग पर घेरा डाले हुए था। महारानी कर्णावती – राणा सांगा की पत्नी थीं। महाराणा संग्राम सिंह उर्फ़ राणा सांगा ने राजपूतों को एकजुट कर मुग़ल शासक बाबर के खिलाफ एक मोर्चा बनाया और सन् 1527 में खानवा (राजस्थान के भरतपुर में) के युद्ध में
बाबर से भिड़े। हालाँकि, बाबर की तोपों और नई तकनीकों का इस्तेमाल मुगलों के काम आया। राणा सांगा बुरी तरह घायल हो गए और कुछ दिनों पश्चात वीरगति को प्राप्त हुए रानी के पास थे ‘विक्रमादित्य’ और ‘उदयसिंह’ के रुप में दो अबोध बालक( पुत्र) और एक राजपूतनी का अदम्य साहस।
उन्होंने बड़े बेटे विक्रमादित्य को सिंहासन पर बिठा कर शासन शुरू किया। (उनके छोटे बेटे राणा उदय सिंह, जिन्होंने 30 वर्ष से भी अधिक समय तक मेवाड़ पर राज किया और उदयपुर शहर की स्थापना की। उनके ही बेटे महाराणा प्रताप थे जिन्होंने अकबर (हुमायूँ का बेटा) के पसीने छुड़ाए थे)
जिस समय बहादुरशाह चित्तौड़ दुर्ग पर घेरा डाले हुए था। उस समय सैन्य बल में चित्तौड़, बहादुर शाह के समक्ष खड़ा भी नहीं हो सकता था, पर साहसी राजपूतों ने बहादुर शाह के समक्ष शीश झुकाने से इनकार कर दिया है। राजमाता ने कुछ पड़ोसी राजपूत नरेशों से मदद मांगी । पड़ोसी राजपूत नरेश सहायता
के लिए आगे आये हैं पर वे जानते थे कि बहादुरशाह को हराना अब सम्भव नहीं है । उनकी पराजय निश्चित है सो सबसे आवश्यक है चित्तौड़ के भविष्य को सुरक्षित करना। और इसी लिए रात के अंधेरे में बालक युवराज उदयसिंह को पन्ना धाय के साथ गुप्त मार्ग से निकाल कर ‘बूंदी’ पहुँचा दिया गया
उधर बहादुर शाह से उलझने को निकला हुमायूँ अब चित्तौड़ की ओर मुड़ गया। अभी वह सारंगपुर में था तभी उसे बहादुर शाह का सन्देश मिलता है जिसमें उसने लिखा था – “चित्तौड़ के विरुद्ध मेरा यह अभियान विशुद्ध जेहाद है। जब तक मैं काफिरों के विरुद्ध जेहाद पर हूँ तब तक मुझ पर हमला
गैर-इस्लामिल माना जायेगा अतः हुमायूँ को चाहिए कि वह अपना अभियान रोक दे।” हुमायूँ का बहादुर शाह से कितना भी वैर हो पर दोनों का मजहब एक था सो हुमायूँ ने बहादुर शाह के जेहाद का समर्थन किया है। अब वह सारंगपुर (म.प्र.) में ही डेरा जमा के बैठ गया और आगे नहीं बढ़ा।
रानी ने पूरी वीरता से बहादुर शाह और उसकी सेना का सामना किया किले के दरवाजे खोल दिए गए।केसरिया बाना पहनकर पुरुष युद्ध के लिए उतर गए। पीछे से राजपूत औरतें जौहर की आग में कूद गई। रानी कर्णावती 13000 स्त्रियों के साथ जौहर में कूद गई। 3000 छोटे बच्चों को कुँए और खाई में फेंक दिया गया
ताकि वे मुसलमानों के हाथ न लगे। कुल मिलकर 32000 निर्दोष लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा दुर्ग पर कब्ज़ा होने के बाद बहादुर शाह की सेना ने चित्तौड़ दुर्ग को बुरी तरह लूटा, किले के अंदर असैनिक कार्य करने वाले लुहार, कुम्हार, पशुपालक, व्यवसायी इत्यादि पकड़-पकड़ कर काटे गए।
उनकी स्त्रियों लूटा गया। और जो बच्चे मिले उन्हें भाले की नोक पर टांग कर खेल खेला गया, तमाशा दिखाया गया। और चित्तौड़ को तहस नहस कर दिया गया। और उधर ग्वालियर में बैठा हुमायूँ इस जेहाद को चुपचाप देखता और खुश होता रहा। हुमायूँ ने चित्तौर का बहादुरशाह के कब्जे में जाने का इंतजार किया
और फिर हमला बोला। शुरू में तो उसकी हार हो रही थी, लेकिन अंत में किसी तरह उसने गुजरात और मालवा पर कब्ज़ा जमा लिया। इस तरह बहादुर शाह के सल्तनत का अंत हो गया। युग बीत गए पर भारत की धरती राजमाता कर्णावती के जलते शरीर की गंध नहीं भूली। फिर कुछ गद्दारों ने इस गन्ध को भुलाने का
षड्यंत्र रचा- “राजमाता कर्णावती ने हुमायूँ के पास राखी भेज कर सहायता मांगी थी।” अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए मुह में गंगा-जल और तुलसी दल ले कर अग्निकुंड में उतर जाने वाली देवियाँ अपने पति के हत्यारे, के बेटे से कभी सहायता नहीं माँग सकती!