Courtesy: https://twitter.com/indic_vibhu/status/1557953102409498624?s=21&t=iLXUXYpex7OIpyrb-plUjw
1842 में खंडवा जिले के बड़दा गांव में जन्मे टंट्या भील(टंट्या मामा)एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे,जिन्हें भारतीय रॉबिनहुड भी कहा जाता है। 1857 के भारतीय विद्रोह केबाद, अंग्रेजोंने बेहद कठोर कार्रवाई की, जिसके बाद ही टंट्या ने अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ना शुरूकिया।

वह उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने बारह साल तक ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया।
विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए, अपने अदम्य साहस और जुनून के बल पर वह 12 साल तक लड़ते रहे और आदिवासियों और आम लोगों की भावनाओं के प्रतीक बने।
वह ब्रिटिश सरकार के सरकारी खजाने और उनके चाटुकारों की संपत्ति को लूटकर गरीबों और जरूरतमंदों में बांट देते थे।
टंट्या भील, गुरिल्ला युद्ध में निपुण थे। लेकिन एक लंबी लड़ाई के बाद, वर्ष 1888-89 में राजद्रोह के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जबलपुर जेल ले जाया गया, जहां ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें अमानवीय रूप से प्रताड़ित किया। टंट्या भील की गिरफ्तारी की ख़बर 10 नवंबर 1889 को न्यूयॉर्क टाइम्स के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित की गई थी। इस ख़बर में उन्हें ‘भारत का रॉबिन हुड’ बताया गया था।
टंट्या आदिवासी भील समुदाय के सदस्य थे उनका वास्तविक नाम टंड्रा था , उनसे सरकारी अफसर या धनिक लोग ही भयभीत थे , आम जनता उसे ‘ टंटिया मामा ‘ कहकर उसका आदर करती थी । टंट्या भील का जन्म सेंट्रल प्राविंस प्रांत के पूर्व निमाड़ खंडवा जिले की पंधाना तहसील के ग्राम बड़दा में 1842 में हुआ था।[1] एक नए शोध के अनुसार उन्होंने 1857 में हुए पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों द्वारा किये गए दमन के बाद अपने जीवन के तरीके को अपनाया[2] । टंट्या को पहली बार 1874 के आसपास “खराब आजीविका” के लिए गिरफ्तार किया गया थाफ एक साल की सजा काटने के बाद उनके जुर्म को चोरी और अपहरण के गंभीर अपराधों में बदल दिया गया। सन 1878 में दूसरी बार उन्हें हाजी नसरुल्ला खान यूसुफजई द्वारा गिरफ्तार किया गया था। मात्र तीन दिनों बाद वे खंडवा जेल से भाग गए और एक विद्रोही के रूप में शेष जीवन जिया। इंदौर की सेना के एक अधिकारी ने टंट्या को क्षमा करने का वादा किया था, लेकिन घात लगाकर उन्हें जबलपुर ले जाया गया, जहाँ उन पर मुकदमा चलाया गया। 19 अक्टूबर 1889 को उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई थी। और 4 दिसंबर 1889 को फाँसी दे दी गई।
भारत के वीर सपूत टंट्या भील को शत् शत् नमन!