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17 किलोग्राम स्वर्ण से निर्मित शिव प्रतिमा? क्या आवश्यकता है ऐसी प्रतिमाओं की?

आपके मन में भी ऐसे प्रश्न उठते होंगे। वामपंथी और मिशनरी अभ्यासक्रम में इनके उत्तर नहीं मिलेंगे, इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढने आपको आगम ग्रंथों का अभ्यास करना पडेगा, पुराणों में डुबकी लगानी होगी!
श्रीमद भागवत महापुराण में क्षणिक प्रतिमाओं के विषय में निम्नलिखित श्लोक प्राप्य है जिसमे पार्थिव / क्षणिक मूर्ति निर्माण के लिए उपयुक्त द्रव्यों की नामावली दी गई है।
शैली दारुमयी लौही लेप्या लेख्या च सैकती ।
मनोमयी मणिमयी प्रतिमाष्टविधा स्मृता ॥
इस श्लोक के अनुसार पाषाण, लकड़ी, धातु, मिट्टी, प्राकृतिक रंग, रेत, रत्न, जैसे सात द्रव्यों से क्षणिक प्रतिमा निर्माण का विधान है।
श्रीमद भागवत में हमें प्रतिमा विज्ञान के विषय में प्राथमिक परिचय प्राप्त होता है लेकिन स्थावर, जङ्गम एवं क्षणिक प्रतिमाओं का विस्तृत अभ्यास करने के लिए हमें शैव–आगम तथा मयमतम जैसे प्रतिमा–विज्ञान के बृहद ग्रंथों का अभ्यास करना आवश्यक हो जाता है।
उपरोक्त प्रतिमा लौहज श्रेणी में आती है। स्वर्ण, चांदी, पीतल, तांबा, सीसा, लौह, घंट के लिए प्रयुक्त अष्टधातु या पञ्चधातु, पारा, कांसा या टिन जैसी धातुओं से लोहज लिङ्गों का निर्माण किया जाता है।
राजसी वैभव की आकांक्षा रखने वाले मनुष्यों को स्वर्ण लिङ्ग का अनुष्ठान करना चाहिए किन्तु स्वर्ण लिंगों की पूजा के नियम बहुत कठिन होते हैं। रावण हमेशा अपने पास स्वर्ण लिङ्ग रखता था।
इस सगुणोपासना के लिए प्रयुक्त द्रव्यों की सूचि में आश्चर्यजनक रूप से ‘मनोमयी’ प्रतिमा का भी वर्णन किया गया है जो निर्गुण उपासना का प्रतीक है। हिन्दू परंपराओं में आप उस अनंत तत्व को साकार तथा निराकार दोनों स्वरूपों में आराधना कर सकते हैं और उपरोक्त श्लोक इसी बात का प्रमाण है।