अल्पसंख्यकवाद और राजनीति अवैध आप्रवासन मुख्य चुनौतियाँ

असम – किस प्रकार ट्राइब्यूनल द्वारा अवैध आप्रवासियों का निश्चय (आई.एम्.डी.टी.) अधिनियम ने प्रत्यर्पण बहुत कठिन बना दिया

तो असम की संजातीय पहचान की रक्षा करने का विषय असम के भारतीय संघ में विलय होने के समय से चला आ रहा है और अतः आपके पास सबसे पहले विधिनियमों में से एक है जो कि १९४६ के विदेशी नागरिक अधिनियम के पश्चात् आया, १९५० का आप्रवासी निष्कासन विधिनियम जो कि असम पर लागू किया गया था, इसके बाद लोगों ने अनुभव किया कि कुछ परिणामजनक काम हो नहीं रहा । हम अब भी देख रहे हैं कि हमारी पहचान और हमारा क्षेत्र अधिगृहीत हो रहा है और बड़ी संख्या में लोग इस भूमि पर आ रहे हैं, हमें इसके बारे में कुछ करना होगा । तो, अखिल भारतीय अहोमिया छात्र संगठन ने इसके बारे में हंगामा करना आरम्भ किया और फिर जो समझौता हुआ उसे असम समझौता के नाम से जाना जाता है, जो कि १५ अगस्त १९८५ को सम्पन्न हुआ ।

अब, इससे पहले कुछ हुआ, सरकार ने एक विधिनियम बनाया, जिसको आई.एम्.डी.टी. कहते हैं – १९८५ का ट्राइब्यूनल द्वारा अवैध आप्रवासी निश्चय अधिनियम, जिससे अनुप्राप्त उन्होंने विदेशी नागरिक ट्राइब्यूनल बनाये, अवैध आप्रवासी ट्राइब्यूनल बनाये, मूलतः इन लोगों को प्रत्यर्पित करने के लिये । १९४६ का विदेशी नागरिक अधिनियम है, १९५५ का नागरिकता अधिनियम है, १९८५ का आई.एम्.डी.टी. अधिनियम है, १९८३ का । आपके पास पहले ही एक विदेशी नागरिक अधिनियम है, विदेशियों को निष्कासित करने के लिये, आपको १९८३ में एक दूसरे अधिनियम की क्या आवश्यकता ? स्वयं को पूछिए, आपको एक ही हेतु की प्राप्ति के लिये दो अधिनियम क्यूँ चाहिये ?

विदेशी नागरिक अधिनियम की आवश्यकता विदेशियों के प्रत्यर्पण के लिये ट्राइब्यूनल गठित करने के लिये है, सरकार के पास किसी को भी, जो कि इस देश का नागरिक नहीं है, जो कि अवैध आप्रवासी है, को निकालने की, सम्पूर्ण शक्तियाँ हैं, अमर्यादित शक्तियाँ हैं इस विधिनियम द्वारा दी गयीं हैं । तो क्यूँ आपको एक दूसरा विधिनियम चाहिये ?

अब यहाँ इसका प्रसंग आता है । आई.एम्.डी.टी. विधिनियम ने सरकार पर एक अतिरिक्त भार डाला कि वो सिद्ध करे कि कोई व्यक्ति एक अवैध आप्रवासी है, परिणामतः जो भार विदेशी नागरिक अधिनियम के अन्तर्गत था, बढाया गया और अधिक हो गया, जिससे कि आपके लिये कठिन हो जाये किसी को बाहर निकालना, इस तरह इस निश्चित अधिनियम के हेतु को ही पराजित कर दिया गया । अतः, अखिल भारतीय अहोमिया छात्र संगठन ने राज्य सरकार को लिखना और प्रतिनिधि भेजना जारी रखा, बार बार किया, ये कहते हुये कि क्या आप जानते हो सबसे बड़ी बाधा क्या है प्रत्यर्पण में ? वही विधिनियम जो कि प्रत्यर्पण को सुकर करने के लिये बनाया गया है, वे इसको लिखते रहे जब तक कि एक शिखर तक बात नहीं पहुँची और फिर उन्होंने १९८५ में असम समझौता किया, परन्तु क्या इससे ये अधिनियम वापिस लिया गया ? नहीं, नहीं लिया गया, ये चलता रहा ।

Leave a Reply

You may also like

इस्लामी आक्रमण मध्यकालीन इतिहास

गुरु गोबिंद सिंह: योद्धा, संत, कवि व दार्शनिक – जिन्होंने भारत के सारे ग्रंथों का निचोड़ दिया | कपिल कपूर

post-image

गुरु गोविन्द सिंह जी के mention के बगैर आप इंडिया की history of ideas कंप्लीट नहीं कर सकते| गुरु गोविंद सिंह जी ने भागवत पुराण को ‘भाखा दियो बनाए’, जो उन्होंने कृष्णावतार लिखा वह उन्होंने पूरे भागवत पुराण को पंजाबी में भाखा में लिखा, रामअवतार लिखा, अकाल स्तुति लिखी, जितना ज्ञान भारत का था उसका जो latest retelling हुआ…retelling… वह सारा वह गुरु गोविंद सिंह जी ने किया| 4 बेटे मरवा दिए, father मरवा दिए, 40 की आयु में मर गए,इतने ग्रंथों की रचना की, इतना social reform किया और धर्म के लिए जान दे दिया, कुर्बानी कर दी| दो बच्चे छोटे- पांच आठ साल के जिंदा दीवार में चुनवा दिए गए और जब उनको खबर मिली तो उनकी आंखों में नमी आई तो किसी ने कहा गुरु जी अगर आप दुख बनाओगे तो…

Read More
क्या आप जानते हैं? प्राचीन इतिहास भारतीय बुद्धि भाषण के अंश

हिन्दू देवी-देवता और संस्कृत जापानी संस्कृति के अभिन्न अंग हैं – बिनोय के बहल – भारत का भित्तिचित्रण

post-image

हमने जापान में संयोग से इन दोनों वेणुगोपाल को देखा। वहाँ मुझे लगा कि आप यह जानने के लिए उत्सुक हो सकते हैं कि हिन्दू देवी-देवताओं की जापान में उतनी ही पूजा होती है जितनी कि भारत में। आपको वास्तव में यह जानकर आश्चर्य होगा कि यहां जापान में एकमात्र सरस्वती मां के सैकड़ों मंदिर हैं जिसमें 250 फुट ऊंचा मंदिर भी है और सरस्वती मां के मंदिर भारत में देखने को नही मिलते। लक्ष्मी माता की यहां पूजा होती है। बहुत सारे देवी-देवता हैं, इतने सारे शिव हैं, ब्रम्हा हैं, यहां तक की यमराज का मंदिर है।

वास्तिवकता में आपको ये जानकर भी आश्चर्य होगा कि हवन या होमा जिसको जापानी भाषा में “गोमा” कहते है, वो जापान के 1200 से अधिक मंदिरों में हर दिन संस्कृत मंत्रोच्चार द्वारा किया…

Read More
प्राचीन इतिहास भाषण के अंश

आज का वर्तमान ग्रीस अपनी पुरातन सभ्यता और संस्कृति को क्यों नहीं बचा सका?

post-image

ग्रीस जिसे हम यूनान के नाम से भी जानते हैं, 1900 ईसवी में अंततः ग्रीस का फिर से उदय हुआ। यदि हम पुरातन सभ्यताओं की याद करें तो ग्रीस और इजिप्ट का नाम भी याद आता है, परंतु ग्रीस के इतिहास पर नजर डालें तो सबसे पहले ग्रीस पर रोमन साम्राज्य का कब्जा हुआ था। परिणामस्वरूप ग्रीस ईसाई धर्म में परिवर्तित हुआ और अपनी सभ्यता संस्कृति खो बैठा।

रोमन राजा ने ग्रीस के धर्म के सभी ग्रीक देवताओं पर प्रतिबंध लगाया तथा ओलिंपिक खेलों को बंद करा दिया, क्योंकि ग्रीस ओलिंपिक पर बड़ा खर्च करता था। मंदिरों को तोड़ा गया, परम्परायें नष्ट होती चली गई और ग्रीस पूर्णतया ईसाई बन गया।

समय के साथ ग्रीस की पुरातन सभ्यता नष्ट होती चली गई। सवाल ये है कि ग्रीस पुनर्जीवित कैसे हुआ? 18वीं सदी में यूरोप ने ग्रीक ज्ञान का अवतरण किया ताकि अरब देशों के माध्यम से पुरातन यूनानी ज्ञान को प्राप्त…

Read More
इतिहास इस्लामी आक्रमण भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन भाषण के अंश मध्यकालीन इतिहास

गुरु तेग बहादुर का धर्मार्थ प्राण त्यागने से पहले औरंगजेब के साथ संवाद

post-image

गुरुदेव बोले, “300 वर्ष पहले हमारे देश में औरंगजेब नाम का निर्दयी राजा था। उसने अपने भाई को मारा, पिता को बंदी बनाया और स्वयं राजा बन गया। उसके उपरांत उसने निश्चय किया कि वो भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाएगा।”
“क्यों गुरुदेव?”
“क्योंकि उसने सोचा कि यदि दूसरे देशों को इस्लामिक राष्ट्र बनाया जा सकता है, तो भारत को क्यों नहीं जहां पर उस जैसा मुसलमान राजा राज करता है। उसने हिंदुओं पर भारी जजिया टैक्स लगाया और हिंदुओं को अपमानित परिस्थितियों में रहने पर विवश किया, अतः वो हिन्दू धर्म का त्याग कर दें। औरंगजेब ने अपने सैनिकों को प्रत्येक दिन ढेर जनेऊ लाने को कहा और उस ढेर जनेऊ को रोज तराजू में तुलवाता था। ये हिंदुओं का जनेऊ होता था जो या तो इस्लाम स्वीकार कर लेते थे या मार दिए जाते थे। बहुत हिंदुओं ने डर कर इस्लाम स्वीकार किया और बहुत…

Read More
इस्लामी आक्रमण क्या आप जानते हैं? भाषण के अंश मध्यकालीन इतिहास हिन्दू मन्दिरों का विध्वंस

भारत के उत्तरी भाग में बड़े मंदिर क्यों नहीं हैं, जैसे भारत के दक्षिणी भाग में हैं?

post-image

शीर्ष सिद्धांतकारों में से एक, शॉन लॉन्डर्स ने कहा कि स्मृति हमें बांधती है और हमें परिभाषित करती है। यह धर्म का एक आवश्यक आयाम है और मिलन कुंदेरा ने कहा है कि सत्ता के खिलाफ मनुष्य का संघर्ष वैसे ही है जैसे विस्मृति के खिलाफ स्मृति का संघर्ष। यह बहुत शक्तिशाली बात है। यह एक ऐसी स्मृति है जो हमें विस्मृति से रोकती है। स्मृति मरती नहीं है। स्मृति की यही सुंदरता है। मैं शायद इसके बारे में सीधे शब्दों में अपनी बच्चों से बात भी नहीं कर सकता, लेकिन मुझे पता है कि मेरी संतानें समझ जाएंगी कि मैं क्या संदेश देना चाहता था और वे इसपर चुप्पी साध लेंगे। स्मृति मौन के सहारे आगे बढती है। मुझे लगता है कि आप सभी इस तस्वीर को जानते हैं। है न? ठीक है। मेरे पास इसके बारे में एक कहानी है जिससे शायद पहली बार मुझे समझ में…

Read More
इस्लामी आक्रमण काश्मीर भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन भाषण के अंश मध्यकालीन इतिहास

एक कश्मीरी शरणार्थी शिविर का नाम ‘औरंगज़ेब का स्वप्न’ क्यों रखा गया? – मनोवैज्ञानिक आघात का ऐतिहासिक संदर्भ पढ़ें

post-image

मैं एक कहानी आपसे साझा करूंगा, क्योंकि मुझे लगता है कि कहानी लोगों को यह बताने का सबसे अच्छा तरीका है कि मैं इस तक कैसे पहुंचा। किसी को पता है कि यह क्या है? यह कश्मीरी शरणार्थी शिविर है। मैं वहां काम कर रहा था, और मेरी पत्नी भी यहाँ है, हम दोनों लोगों के आघात पर काम करने के लिए शिविरों में जाते थे और ऐसे शिविर कई सारे थे। हमने अपना काम बांट लिया था। हम शिविर में जाते थे, उन लक्षणों पर चर्चा करते थे जिन्हें लोग महसूस करते थे। उनमें से ज्यादातर सो नहीं पाते थे। उनमें से अधिकांश को बुरे स्वप्न आते थे, उनमें से अधिकांश में ऐसे कई लक्षण थे। हम इस पर चर्चा करते थे, उन्हें व्यायाम, बातचीत द्वारा फिर से ठीक करने और फिर वापस आने में मदद करते थे।

बाहर आते समय एक दिन, एक बूढ़ा कश्मीरी आदमी, एक छोटा…

Read More
अखंड भारत क्या आप जानते हैं? प्राचीन इतिहास भाषण के अंश

भारत का नाम इंडिया कैसे पड़ा?

post-image

‘इंडिया’ शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? शायद यह आपको ज्ञात हो| सबसे पहले ‘सिंधु’ शब्द से ‘हिंदू’ बना। फिर जैसे स्पेनिश में ‘ह’ अक्षर उच्चारण में गौण हो जाता है उसी प्रकार ‘ह’ का उच्चारण लुप्त होकर ‘इंदु’ बना। जब मैं बार्सिलोना में था, मैंने एक रेस्तरां का नाम ‘लो कॉमिडा हिंदू’ पाया। पर इसका उच्चारण वे ‘ह’ को गौण रखकर ‘इंदु’ ही कर रहे थे|  आप हजारों साल पहले भी इस प्रकार का संदर्भ प्राप्त हो सकता है| अलग अलग देश इसे ‘इंड’, ‘इंडिका’, ‘इंडिया’ इत्यादि जैसे नामों से पुकारते हैं|

Read More
प्राचीन इतिहास प्राचीन भारतीय शिक्षा भारत की चर्चा

भारतीय गुरुकुल शिक्षा प्रणाली — मेहुलभाई आचार्य का व्याख्यान

post-image

भारतीय परंपरा में मनुष्य जीवन के सबसे महत्वपूर्ण मूल्यों में से शिक्षा को सबसे उच्च का स्थान दिया गया है| पुरातन काल से भारतवर्ष समस्त विश्व के लिए ज्ञान का स्रोत रहा है और भारत के ज्ञान का सर्वप्रथम स्रोत हैं हमारे वेद| एक सुसंस्कृत व्यष्टि को समष्टि की नींव मानते हुए एक सुदृढ़ तथा विकसित समाज के निर्माण हेतु शिक्षा की अभूतपूर्व परिकल्पना भारत के ऋषियों, मनीषियों एवं गुरुओं ने ही की थी| इसी चिंतन ने जन्म दिया भारतीय गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को|

क्या थी गुरुकुल शिक्षा प्रणाली? कितनी प्रकार की पद्धतियाँ होती थीं इस प्रणाली में? कहाँ से आरम्भ होती थी शिक्षा? क्या शिक्षा केवल विषय-ज्ञान तक सीमित थी या इसका कोई अलौकिक अभिप्राय भी था? जानिए श्री मेहुल आचार्य के व्याख्यान में|

श्री मेहुल आचार्य जी हमें बताते हैं की मानव व्यक्तित्व के संतुलित व बहुमुखी विकास के लिए तथा विकसित समाज…

Read More
%d bloggers like this: