आयुर्वेद कई नुस्खे देता हैं कि ऋतुस्राव के समय क्या करना चाहिए और क्या नहीं जिसे रजस्वला परिचर्या I परिचर्या अर्थात् जीवन शैली I
रजस्वला स्त्री को उन तीन दिनों में किस प्रकार की जीवन शैली अपनानी चाहिए ? चरका संहिता इसका सार देती हैं और कहती हैं कि, ऋतुस्राव के आरम्भ होते ही स्त्री को तीन दिनों और तीन रातों के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, धरती पर सोना चाहिए, अनटूटे हुए पात्र से हाथों से भोजन ग्रहण करना चाहिए और अपने शरीर को किसी भी प्रकार से शुद्ध नहीं करना चाहिए I इसका सविस्तार किया गया हैं, मैंने इस मानचित्र को बनाया हैं, इस मानचित्र को कुछ पत्रादि में दिया गया हैं, शैक्षिक पत्र में, मैंने इसका प्रसंग नीचे दिया हैं I यह सूचि है किन चीज़ों को करने या ना करने कि I
मैंने ब्रह्मचर्य के बारें में कहा था I कुश से बनी शय्या पर सोना चाहिए या किसी चटाई पर खाट पर नहींI हल्का भोजन करना चाहिए, घी से बना हुआ कुछ, शाली चावल, दूध जो आसानी से पाच जाए और जो थोड़ी मात्रा में हो हाथों से खाना चाहिए किसी पात्र में नहीं, पवित्र वस्तुओं से नहीं I यह बड़ी दिलचस्प बात हैं, खाने के नुस्खे I इस नुस्खों का आधार हैं कम खाना और कम मात्रा में खाना I क्योकि ऋतुस्राव के समय शरीर उस अवस्था में होता हैं जब वोह अधिक भोजन पचा नहीं सकता I इसको अग्निमांद्य कहतें हैं, अर्थात् पाचक अग्नि बहुत मंद होती हैं, मंड्या धीमा होता हैं I तो उस समय अधिक भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए,
अस्वास्थ्यकर खाना नहीं हो, मॉस नहीं खाना चाहिए अदि I आपको हल्का खाना खाना चाहिए जैसे शाली चावल, हविश्यन्ना I कहतें हैं हविष्यन्न वोह भोजन होता हैं जो आप यग्न में प्रयोग करतें हैं, और कम मात्रा में खाएं I
दूसरी चीज़ें भी हैं जैसे ब्रह्मचर्य इत्यादि I यह बातें कहीं गएँ हैं दोषों में असंतुलन को रोकने के लिए, नियंत्रित करने के लिए I यह पूरी सूचि, एक ही कारन हैं स्त्री के स्वस्थ्य कि रक्षा और दोषों में असंतुलन को रोकना I आप जब दिन में सोतें हैं, अपने को सजातें हैं, स्नान करते हैं, मालिश करातें हैं इत्यादि, यह सब अग्निमंध्य को प्रभावित करतें हैं I यह स्वस्थ्य अभ्यास को प्रभावित करतें हैं, बहुत देर तक बातें करना, कंघी करना इत्यादि I
पर यह किस प्रकार प्रभावित करतें हैं, व्यक्त होतें हैं ? जब आपका जैविक चक्र अस्तव्यस्त हो जाता हैं, बाद में जब आपके बच्चें होतें हैं, यदि आप, एक बार नहीं बार बार, हर मासिक चक्र में, यह असंतुलन बनी रहती हैं I इसका तीव्र परिणाम यह होगा के जब आप गर्भ धारण करेंगी और उसके बाद जब बच्चे पैदा होंगे तब उनमे कई अनियामिततऐ होंगी I ऐसा नहीं हैं कि हर स्तिथि में ऐसे अनियमितताएं देखने को मिली हैं, यह लिखित प्रमाण हैं जिन्हें देखा गया हैं एक लम्बे काल तक और फिर उसे लिखा गया हैं I यह चीज़ें हो सकती हैं, संभवतः अति हो I इनके अलावा दुसरे भी प्रभाव पड़ सकतें हैं स्वास्थय पर, अगर दोषों में असंतुलन रहा तो I तो यह आयुर्वेदिक कारण कि जांच ही नहीं होती I
अग्निमंध्य के अलावा एक और तत्व हैं शोधन का I आयुर्वेद में एक प्रक्रिया हैं शरीर कि शुद्धि कि I आयुर्वेद साफ़ तौर से स्वीकार करता हैं कि ऋतुस्राव शोधन की क्रिया हैं क्युकी
वोह वही नुस्खे देता हैं रजस्वला परिचर्या में शोधन के आठ मार्ग बताएं गएँ हैं I उन पर विस्तृत जानकारी के लिए आप मेरे लेख पढ़िए I तो यह शुद्धि कि प्रक्रिया हैं जिसे आयुर्वेद भी मानता हैं, और एक पक्ष हैं हानि का, अंतर्गार्भ्शय्कला के मॉस तंतु का स्तवन होता हैं शरीर से I तो इसको क्षति के रूप में भी देखा जाता हैं जिसे चिकित्सा की आवश्यकता हैं आर इसी लिए यह प्रतिबन्ध हैं I तो इस तालिका में तुलना कि गयी हैं पद्धतियों कि जब एक व्यक्ति घायल हुआ हैं, जिसका ऑपरेशन हुआ हो, उसे कैसे विश्राम करना चाहिए आदिI