हिन्दुओं के मंदिरों से लिया गया पैसा दो चीजों में लगाया गया है, ईसाईयों की जेरूसलम यात्रा और मुसलमानों की हज यात्रा। यह हिन्दुओं के पैसे से हो रहा है। यदि मैं ईसाई या मुसलमान होता तो मैं यह कहता, मैं आहत होता कि हमारे पास क्या पैसा नहीं है? हमें यह खैरात नहीं चाहिए? चलिये इसको सम्वैधानिकदृष्टि कोण से देखते हैं, यह गतिविधि पूरी तरह से संविधान के अनुछेध २७ का उल्लंघन, अवमानना और परिभंजन करती है।
अनु०२७ पूरी तरह स्पष्ट करता है कि कर या जनता से संग्रहीत कोई भी धनराशी राज्य द्वारा किसी एक सम्प्रदाय विशेष के हित में व्ययन हीं की जा सकती । अनु०२७ राज्य को मन्दिर, चर्च या मस्जिद से बिलकुल पृथक करता है । अतः जब आप हिन्दुओं से लिये गये पैसे को दूसरे सम्प्रदायों के हित में लगाते हो, और यह सबकुछ प्रमाणित है, सबकुछ लिखित में है, तो आप अनु०२७ कि अवज्ञा करते हो । और ये लोग हमें सम्वैधानिक आदर्शों का ज्ञान देते हैं।