अब दूसरी बात यह है की अर्थनैतिक रूप से दक्षिणपंथी लोग भी राष्ट्रविरोधी है। मैं मानता हूँ कि उदारवादी अर्थशास्त्र सतत विकास का विरोधी है। मुझे लगता है कि अयन रैंड जिन चीज़ों के बारे में बात करते है वह बिलकुल बकवास है; पर दक्षिणपंथा गरीब-विरोधी है ऐसा लगने लगा है। हम गरीब-विरोधी, किसान- विरोधी और यहां तक कि युवाओं के विरोधी लगने लगे हैं, और यहां हमें एक पल के लिए रुकना पड़ेगा और उन सारे सिद्धांतों के बारे में फिर से सोचना पड़ेगा जो कहते है की आप सब्सिडी लगाये गए स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ बहस नहीं कर सकते। आप इससे असहमत हो सकते हैं, मैं स्वयं उसमें बताये गए बहुत सारी चीजों से असहमत हूं। लेकिन अगर आप एक दक्षिणपंथी व्यक्ति हैं, और अगर आप सही माइने में यह विश्वास करते हैं कि आप ग्रामीण इलाकों में काम कर रहे इन मिशनरी स्कूलों पर रोक लगाना चाहते है तो कृपया लोगों को मुफ्त में शिक्षा दे; अगर उसके ज़रिये आप इनपर रोक लगा सकते है तो |
लेकिन मैं एक व्यक्ति से बात कर रहा था और उसे कुछ आपातकालीन चिकित्सा के लिए अस्पताल में जाना पड़ा, और उसे 700 रुपये की फीस भरनी पड़ी और ऊपर से दवाइयों के लिए भी 100-200 रुपये का भुगतान करना पड़ा। यह हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं है, हम इतना भुगतान कर सकते हैं; लेकिन इस देश के अधिकांश लोगों के लिए इसे बर्दाश्त कर पाना असंभव है | और जब कभी सरकार कोई नीति चालू करती है या ऐसे कार्यक्रम शुरू करती हैं जहां स्वास्थ्य की क्षेत्र पर सब्सिडी दी जाती हो, तब सोशल मीडिया पर या फिर समाचार पत्र और बाकि हर जगह पे रहने वाले दक्षिणपंथी लोग इसे मुफतखोरी का अर्थव्यवस्था कहते हैं, और ऐसा भी कहते है की यह लोग तो मुफ़्तखोर हैं; कृपया ऐसा कहना बंद करे। यदि आप राष्ट्र और राष्ट्रवाद में विश्वास रखते हैं, तो कृपया अपने लोगों को मुफतखोर कहना बंद करे |
इसमें कोई संदेह नहीं है की भ्रष्ट लोग हैं, ऐसे भी बहुत सारे लोग हैं जो सिस्टम पर बोझ बने हुए हैं, वे अनुचित लाभ उठाते हैं, लेकिन उन लोगों को मुफ्तखोर न कहें जिनको सब्सिडीयुक्त भोजन दिया जाता है, जब उनकी शिक्षा पे सब्सिडी होती है, जब उनकी स्वास्थ्य व्यवस्था पे सब्सिडी होती है। हकीकत में जियें, जैसा कि मैं कहता हूं, की एक रूढ़िवादी होने के नाते आपको वास्तविक स्थिति पर ध्यान रखना चाहिए, और ये चीजें बहुत जरूरी हैं, ये चीज़ें न केवल गरीबों और अत्यंत गरीब लोगों के लिए ज़रूरी है, बल्कि शहरी नव मध्यम वर्ग के लोगों के लिए भी इन चीज़ों की ज़रूरत है। वे इस तरह की उंची महंगाई में जी नहीं सकते।