गुरुदेव बोले, “300 वर्ष पहले हमारे देश में औरंगजेब नाम का निर्दयी राजा था। उसने अपने भाई को मारा, पिता को बंदी बनाया और स्वयं राजा बन गया। उसके उपरांत उसने निश्चय किया कि वो भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाएगा।”
“क्यों गुरुदेव?”
“क्योंकि उसने सोचा कि यदि दूसरे देशों को इस्लामिक राष्ट्र बनाया जा सकता है, तो भारत को क्यों नहीं जहां पर उस जैसा मुसलमान राजा राज करता है। उसने हिंदुओं पर भारी जजिया टैक्स लगाया और हिंदुओं को अपमानित परिस्थितियों में रहने पर विवश किया, अतः वो हिन्दू धर्म का त्याग कर दें। औरंगजेब ने अपने सैनिकों को प्रत्येक दिन ढेर जनेऊ लाने को कहा और उस ढेर जनेऊ को रोज तराजू में तुलवाता था। ये हिंदुओं का जनेऊ होता था जो या तो इस्लाम स्वीकार कर लेते थे या मार दिए जाते थे। बहुत हिंदुओं ने डर कर इस्लाम स्वीकार किया और बहुत हिन्दू मार दिए गए।” “क्या औरंगजेब सफल हुआ”, आदित्य ने पूछा। “कदापि नहीं, उसकी क्रूरता से पूरे भारत में बहुत लोग डरे। उनकी सेनाएँ जहाँ भी जातीं, वे मंदिर के ऊपर मस्जिदें बनाते। ऐसा कहा जाता है कि उनकी सेनाएं देवी देवताओं को मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबा देती थीं ताकि लोग उनको रौंदते रहें।” “क्या औरंगजेब हिंदुओं के संकल्प को तोड़ दिया।” “नहीं, बड़ी संख्या में हिंदुओं ने धर्मांतरण ना करवा कर मृत्यु को चुना और औरंगजेब को दुविधा का सामना करना पड़ा। यदि हिन्दू मृत्यु चुनते हैं तो वह किस पर शासन करेगा। तत्पश्चात उसने कश्मीर के पंडितों का धर्म परिवर्तन करवाने का निश्चय किया। कश्मीर क्यों? कश्मीर इसलिए क्योंकि कश्मीर हिन्दू बहुल क्षेत्र था और औरंगजेब सोचता था कि यदि कश्मीर को पूरा इस्लामिक बना लिया जाए तो शेष भारत अनुसरण करेगा। उसने अपने हाकिम को आदेश दिया कि सारे कश्मीरी पंडितों का इस्लाम में धर्म परिवर्तन करा दिया जाए अथवा मार दिया जाए। यह सुनने के बाद जब लगा कि मृत्यु निश्चित है, तब 500 कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधि मंडल लेकर प्रतिष्ठित पंडित कृपा राम आनंदपुर साहिब के नौवें गुरु तेग बहादुर के पास गए।” “वो प्रतिनिधि मंडल गुरु तेग बहादुर के पास क्यों गए?” “क्योंकि गुरु तेग बहादुर को निर्बल और कमजोरों के रक्षक के रूप में जाना जाता था।
जब गुरुदेव ने उनकी पीड़ा सुनी, तो उन्होंने कहा कि औरंगजेब को शिक्षा देने और सबक सिखाने के लिए एक किसी के प्राणों का त्याग आवश्यक है। उनके एकमात्र पुत्र गुरु गोविंद सिंह ये कर सकते थे!” “वो मेरी उम्र के थे और अपने पिता से यह कह सकते थे!” आदित्य ने आँखें चौड़ी करते हुए कहा। “हाँ बेटा, पुराने समय में बच्चे बड़े उत्तरदायित्व ले लेते थे। जीवन इतना अल्पकालीन था “मुझे याद है एक दिन अपनी बेटी को यह हिस्सा पढ़ते हुए और वो बोली, “आप कह रहे हैं कि 10 साल के बच्चे ऐसा बोल सकते थे!” इसका अर्थ है कि पुराने समय में जीवन वास्तव में कठिन रहा होगा, मुझे ऐसा लगता है कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे आपसे या किसी से ऐसा कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। “उसके बाद क्या हुआ?” “गुरुदेव ने उनको वापस जाकर हाकिम इफ्तिखार खान को कहने को कहा, कि वो औरंगजेब तक यह सूचना भेज दे – ‘यदि तुम गुरु का इस्लाम में धर्म परिवर्तन कर सकते हो तो पूरा भारत धर्मांतरित होगा परन्तु यदि नहीं कर सके, तो तुम्हें भारत को एक इस्लामिक देश बनाने के अपने सपने को भूलना होगा।’ यह सुनने पर औरंगजेब को लगा कि उसकी विजय हो गई। एक व्यक्ति का धर्म परिवर्तन, जो कठिन विषय नहीं होगा, उसका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।
पहले, गुरुदेव और उनके शिष्य क़ाज़ी के सामने लाये गए जिसने उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी यदि उन्होंने इस्लाम नहीं अपनाया। गुरु ने उसे आनंद के साथ सुना और मना कर दिया। फिर गुरुदेव को बेड़ियों में बांध कर औरंगजेब के दरबार में लाया गया। उनकी उपस्थिति ने शाही दरबार को उज्जव कर दिया, जिससे सारे गहने फीके लग रहे थे। भले ही वो भूमि पर खड़े थे, किन्तु वो सिंहासन के ऊपर बैठने वाले औरंगजेब से भी अधिक ऊंचे दिखाई दे रहे थे। गुरुदेव अपनी लहराती हुई दाढ़ी के साथ तेजस्वी दिख रहे थे। उनकी आँखें इतनी शक्तिशाली थीं कि वे तुम्हारी आत्मा के माध्यम से देख सकते थे। औरंगजेब उनकी ओर आंख उठाकर भी नहीं देख सका। ‘तेग बहादुर, तुम यहाँ इस्लाम अपनाने आये हो’, अंत में बादशाह के दरबारियों में से एक ने उनसे कहा। ‘नहीं’, गुरुदेव ने गरज कर कहा। ‘मैंने कहा था कि यदि तुम मुझे इस्लाम में परिवर्तित कर सके तो पूरा भारत मेरा अनुसरण करेगा और यदि नहीं तो तुम्हे अपने सपने को छोड़ना होगा। देखते हैं औरंगजेब यदि तुम्हारे अंदर इतनी शक्ति है। मैंने तुम्हें मुझे बदलने की हिम्मत की। यदि तुम असफल होते हो, तो तुम हिंदुओं का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन और उनके मंदिरों की अपवित्रता और तोड़फोड़ बंद करोगे।’ सन्नाटा पसर गया। ‘तुम जानते हो तुम किससे बात कर रहे हो?’ किसी एक दरबारी हिम्मत कर के पूछा। ‘यदि आप इस्लाम को गले लगाते हैं तो बादशाह आपको अपने शाही दरबार में एक उच्च पद देने का वादा करता है और आपको कई गहने दिए जाएंगे और राज्य में आपका सबसे बड़ा हरम होगा।’ गुरुदेव बहुत जोर से हसें। दरबार के हॉल के खंभे उसकी हँसी से हिलते हुए प्रतीत हुए। उनकी हँसी शेर की दहाड़ जैसी थी।
जब औरंगजेब ने दरबार में चारों ओर देखा, तो उसने अपने पूरे शाही दरबार को बैठे हुए स्थिर पाया। ‘तुम मूर्ख मनुष्य’। गुरुदेव गरजे। ‘क्या तुम्हे लगता है कि तुम मुझे सर्वशक्तिमान परमात्मा के नाम पर लुभा सकते हो? तुम सोचते हो कि यदि मैं किसी अन्य नाम से यह कहूं कि यह एकमात्र सही मार्ग है तो मैं स्वीकार करता हूं कि मेरा मार्ग गलत है?’ तुम्हे किसने इस गलत निष्कर्ष पर आने के लिए प्रेरित किया है?” “गुरुदेव बादशाह से ऐसे कैसे बात कर सकते थे?” आदित्य ने पूछा। “जो लोग दूसरों के लिए खड़े होते हैं और धर्म के अवतार होते हैं, उनमें ऐसा गुण विकसित होता है।” उसके गुरु ने उत्तर दिया। “और उन्होंने सबके सामने बादशाह को मूर्ख बता दिया!” आदित्य खिलखिलाया। औरंगजेब एक शब्द बोलने में असमर्थ हो गया। इतिहास इस दिन को नहीं भूलेगा, उसके दरबारियों ने सोचा, जब भारत का बादशाह एक अज्ञात गुरु के सामने इतने दयनीय दिख रहा था।
गुरुदेव ने आगे बोला, ‘परमात्मा एक है। तुम उसको जिस किसी भी नाम से पुकारो, वो फिर भी एक है। हमारे रास्ते हमें उसी अंतिम लक्ष्य तक ले जाते हैं। हम उसे किसी भी नाम से पुकार सकते हैं लेकिन बिना गर्व, दंभ या छल के ऐसा करने की जरूरत है और तुम औरंगजेब तीनों से भरे हुए हो।’ “बादशाह इतना मूक क्यों रह गया कि कुछ कहने में असमर्थ हो गया था?” आदित्य ने पूछा। “अहंकारी व्यक्ति सच बोलने वाले किसी भी व्यक्ति से सामना होने पर अपनी वाणी खो देते हैं”, गुरुदेव बोले। “औरंगजेब बोला, ‘क्या आप मुझे एक चमत्कार दिखा सकते हैं कि आप एक पवित्र व्यक्ति हैं?’ ‘नहीं, तुम्हे समझाने के लिए मैं इतना मूर्खतापूर्ण काम नहीं करूंगा औरंगजेब।’ ‘अब मैं अंतिम बार पूछता हूँ आप इस्लाम स्वीकार करते हैं या नहीं?’ ‘नहीं करूंगा। अभी नहीं, कभी नहीं, चाहे मेरे शरीर के हजारों टुकड़े हो जाएं।’
बादशाह ने इतना अपमानित महसूस कभी नहीं किया था। ‘कल पूरे भारत को पता होगा कि गुरु ने उनके प्रस्ताव को कैसे ठुकरा दिया। न केवल उनकी प्रजा हँसेंगी बल्कि आने वाली पीढ़ियों भी हँसेंगी।’ वो बोला, ‘तुम मूर्ख! तुम बेड़ियों में जकड़े खड़े हो। तुम्हारी पलक झपकने से पहले मैं तुम्हे मार सकता हूँ।’ ‘हाँ, तुम ये कर सकते हो औरंगजेब। तुम मेरे शरीर को मार सकते हो, परन्तु मेरे लोगों की आत्मा को नहीं। मैंने तुमसे ज्यादा दयनीय किसी को नहीं देखा औरंगजेब। तुम, भारत के राजा, भीख मांग रहे हो, पूरे दरबार के सामने भीख मांग रहे हो।’ ‘दूर ले जाओ, चालीस दिन तक प्रताड़ित करो जब तक इसे पछतावा ना हो। यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो सिर को काट दो ताकि एक बार में केवल एक बूंद खून टपके,’ औरंगजेब चीखा। ‘उसके बाद सिर को शहर के हर ओर लेकर जाओ ताकि सब देखें’। गुरुदेव हँसें। ‘कौन हारा औरंगजेब? अपने सभी लोगों के साथ तुम एक भी निहत्थे पुरुष को परिवर्तित नहीं कर सके।’
कई दिनों के बाद गुरुदेव का सिर धड़ से अलग कर दिया गया, और सिर को शहर के चारों ओर ले जाया गया। अंत में, उनके कुछ शिष्यों को उनका शरीर को मिल पाया और उनका अंतिम संस्कार हो पाया। आज, उस स्थान पर जहां उसका शीश धड़ से अलग किया गया था, उसे गुरुद्वारा शीश गंज के नाम से जाना जाता है।