रवि रंजन इसका आर्थिक पहलू बताते हैं कि किसी भी भोज्य पदार्थ, चाहे वे चिप्स क्यों न हों, को ‘हलाल’ तभी माना जा सकता है जब उसकी कमाई में से एक हिस्सा ‘ज़कात’ में जाए – जिसे वे जिहादी आतंकवाद को पैसा देने के ही बराबर मानते हैं, क्योंकि हमारे पास यह जानने का कोई ज़रिया नहीं है कि ज़कात के नाम पर गया पैसा ज़कात में ही जा रहा है या जिहाद में। और जिहाद काफ़िर के खिलाफ ही होता है!
हलाल-अर्थव्यवस्था और झटका मांस आन्दोलन — रवि रंजन सिंह का व्याख्यान
