अनुवादिका – आशा लता चौधरी
महाकाव्य भी अत्यंत महत्वपूर्ण है और उनका बहुत अधिक आदर किया जाता है । वस्तुतः रामायण पर मेरी एक फिल्म है जिसका फिल्मांकन मैंने 10 देशों में किया था, सुजाता और मेरे लिए लोगों की उस निष्ठा को देखना बहुत सुखद था, जिससे वे रामायण का दूसरे देशों में सम्मान करते हैं । मैं आपको बताना चाहता हूं कि हम भारत में रामायण का जितना आदर करते हैं अन्य अनेक एशियाई देशों में उससे कहीं अधिक आदर करते हैं । यह उनके दैनिक जीवन का अंग है । दो लोगों को बैठकर परस्पर बातें करते आप सुने तो उनमें से एक शायद कहे, “अरे तुम फिर से विभीषण की तरह आचरण कर रहे हो।” अतः यह उनके जीवन का एक अंग है।
यहां तक कि थाईलैंड जैसे बौद्ध देश में राम आज भी राजा है और उन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है । थाईलैंड में प्रधानमंत्री की एक परंपरा रही है जिसमें वे स्वयं को भगवान राम के महानतम भक्त और प्रधान सेवक के रूप में देखते हैं । इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देश में भी रामायण का प्रतिदिन बहुत ही सुंदर ढंग से, बहुत बड़े स्तर पर साथ ही अत्यंत लालित्य पूर्ण और मनोहर अभिनय किया जाता है ।
कंबोडिया जैसे देश में हमने रामायण का सर्वाधिक कोमल ध्यानमय और सर्वाधिक सुंदर अभिनय देखा, वहां कलाकार नृत्य से पूर्व पूजा में स्वयं को खो देते हैं । यह स्मरण रखना अत्यंत आवश्यक है कि इन भारतीय परंपराओं में वे भारत से आने वाली प्राचीन परंपराओं या शैलियों में अभिनय नहीं करते । नृत्य कभी अभिनय नहीं होता । यहां तक कि आज हम इस शब्द का प्रयोग करते हैं, यह बहुत गलत शब्द है, और हम मंच पर जो करते हैं वह प्रायःबिल्कुल गलत होता है क्योंकि इस प्रकार का नृत्य भक्ति है ।
सौभाग्य से कुछ स्थानों जैसे मणिपुर में यह परंपरा अभी भी जीवित है । मणिपुर में मैंने फिल्मांकन किया है । इस पर फिल्म बनाई है । मैंने कई बार देखा है कि जब वे रासलीला करते हैं तो दर्शक और उसे करने वाले लोग एक हो जाते हैं । वह भक्ति में एक होते हैं, उसके बाद करतल ध्वनि या कुछ और नहीं होता यह अभिनय तो बिल्कुल भी नहीं होता । अतः महाकाव्य बहुत महत्वपूर्ण हैं । महाकाव्य संपूर्ण एशिया महाद्वीप में सदा ही अत्यंत महत्वपूर्ण रहे हैं ।